Uses and Precautions Of Antibiotics


Antibiotics (Uses and Precautions)



      Antibiotics are powerful medicines that fight certain infections and can save lives when used properly. Learn how to use antibiotics from the Best allied health school (Gramin Swasthya Prerak Prashikshan Sansthan). We make sure that people know about the use and precautions of various Antibiotics. In Our Health Allied Institute, we complete the whole course of medication. It is necessary to know about the use and precautions of Antibiotics in following conditions:-

1.       गर्भावस्था और एंटीबायोटिक्स (Pregnancy and Antibiotics)- 
     आदर्श रूप से तो गर्भावस्था में कोई भी एंटीबायोटिक्स नहीं देना चाहिए, परंतु यदि संक्रमण को दूर करने हेतु एंटीबायोटिक्स ऐसे हैं जिन्हें गर्भावस्था में अति आवश्यक होने पर दिया जा सकता है | जैसे –
Ø   Inj. Crystalline Pencillin
Ø   Cap. Ampicillin or Inj. Ampicillin
Ø   Erythromycin Tab or Cap.
Ø   Inj. Omnatax or Taxim.

कुछ एंटीबायोटिक्स तो गर्भावस्था में बिल्कुल नहीं देना चाहिए | जैसे-
Ø   टेट्रासाइक्लीन (Tetracycline)- टेट्रासाइक्लीन (Tetracycline) माता तथा गर्भस्थ शिशु दोनों को बुरी तरह प्रभावित करते हैं | यह माता में यदि वृक्क विकार (Renal disorder) उत्पन्न करता है, तो गर्भस्थ शिशु के यकृत तथा अग्न्याशय में विकार उत्पन्न करता है | (Hepatic & Pancreatic disorder) | इसके अतिरिक्त टेट्रासाइक्लीन शिशु के दाँतों तथा अस्थियों को भी प्रभावित करता है |
Ø   Chloramphenicol- क्लोरेमफेनिकाल को भी गर्भावस्था में बिल्कुल नहीं लेना चाहिए, क्योंकि यह भी माँ तथा बच्चे दोनों में विकार उत्पन्न करता है |
Ø   Sulfonamides जैसे- Cotrimoxazole.
Ø   Nitrofurantion
Ø   Ofloxacin
Ø   Quinine
Ø   Tobramycin­­­­­­­­­­
Ø   Ciprofloxacin
Ø   Remodar or Reziz forte
Ø   Amphotericin-B

  उम्र (Age)- उम्र का एंटीबायोटिक्स के उत्सर्जन तथा शरीर पर कुप्रभाव से काफी घनिष्ट संबंध है | अधिकांश एंटीबायोटिक्स यकृत तथा गुर्दों द्वारा उत्सर्जित होते हैं | बच्चों में यह दोनों ही अंग ठीक से विकसित नहीं हो पाये होते हैं | इसलिए उनका उत्सर्जन ठीक से नहीं हो पता है और यह औषधियाँ बच्चों में विषाक्ता उत्पन्न करती हैं | इसलिए बच्चों में इन्हें एक तो अति आवश्यक होने पर ही देना चाहिए और वह भी कम मात्रा में देना चाहिए |
Ø  नवजात शिशुओं में कुछ एंटीबायोटिक्स (Antibiotics) बिल्कुल नहीं देना चाहिए | जैसे –
·         क्लोरेम्फेनिकाल (Chloramphenicol)
·         सल्फोनामाइड (Sulfonamides)
·         टेट्रासाइक्लीन्स (Tetracyclines)
यह एंटीबायोटिक्स 6 वर्ष से छोटे बच्चों को भी नहीं देना चाहिए |
Ø  क्लोरेम्फेनिकाल (Chloramphenicol) शिशुओं में ग्रे बेबी सिंड्रोम (Grey baby Syndrome) उत्पन्न करता है |
Ø  सल्फोनामाइड (Sulfonamides) जैसे – Cotrimoxazole शिशुओं में दिमागी पीलिया (Kernicterus) उत्पन्न करते हैं |

2.   अनुवांशिक कारक (Genetic Factor)- 
      कुछ अनुवांशिक कारक ऐसे हैं जिनकी उपस्थिति में   व्यस्कावस्था में भी कुछ एंटीबायोटिक्स नहीं दिए जा सकते और दिए जायें तो रोगी में गहन जटिलताएँ उत्पन्न करते हैं | जैसे –
G-6PD की कमी वाले रोगियों में निम्न एंटीबायोटिक्स नहीं दे पाते हैं –
Ø  Sulfonamides- eg. Cotrimoxazole.
Ø  प्रीमाक्वीन (Primaquine)
Ø  क्लोरेम्फेनिकाल (Chloramphenicol)
Ø  सिपरोफ्लोक्सासिन (Ciprofloxacin)
यदि यह एंटीबायोटिक्स G-6PD की कमी वाले रोगी को दिए जाएँ तो उसकी लाल रक्त कणिकाओं (R.B.C.s) हीमोलिसिस (Heamolysis) होने लगती है और रोगी को पीलिया हो जाता है |

3.  यकृत विकार में एंटीबायोटिक्स लेने में सावधानी (Precaution in use of antibiotics in a patient of Hepatic disorder)-
     यकृत विकार के रोगियों में कुछ एंटीबायोटिक्स तो बिल्कुल नहीं लेने चाहिए |

उदाहरणार्थ
Ø  Tetracyclines
Ø  Ciprofloxacin
Ø  Pefloxacin
Ø  Nalidixic Acid
Ø  Erythromycin
Ø  Talampicillin
Ø  Pyrazinamide
Ø  Sulfonamides- eg. Cotrimoxazole, Sulfamethoxezol.
कुछ एंटीबायोटिक्स ऐसे हैं जिनमें यकृत विषाक्ता होती तो है, परंतु कम होती है | इसलिए यकृत विकार के रोगियों में इनका उपयोग कम मात्रा में करना चाहिए |

 उदाहरणार्थ
Ø  Rifampicin
Ø  I N H (Isonizid)
Ø  Metronidazole
Ø  Chloramphenicol
Ø  Clindamycin
Ø  Ampicillin
Ø  Cefoperazone
Ø  Cefotaxime
Ø  Ceftizoxime
Ø  Ceftriaxone
Ø  Cefadoxil
उपयुक्त एंटीबायोटिक्स यदि लम्बे समय तक उपयोग में लेन हैं, तो सामान्य रोगी में उपयोग के समय भी रोगी के यकृत कार्य परीक्षण (Liver Function Test) कराते रहें; जैसे-
S. bilirubin, S.G.O.T., S.G.P.T, ϒ GT.,(S=Serum), S.alk PO4 ase.

4.  वृक्क विकार के रोगियों में एंटीबायोटिक्स का उपयोग (Use of antibiotics in patients of renal disorders)-
      वृक्क विकार के रोगियों में एंटीबायोटिक्स के उपयोग में बहुत सावधानी रखनी चाहिए l
वृक्क विकार के रोगियों में कुछ एंटीबायोटिक्स तो बिल्कुल नहीं देना चाहिए |

उदाहरणार्थ –
Ø  Inj. Mikacin
Ø  Inj. Gentamycin
Ø  Inj. Tobramycin
Ø  Cap. Neomycin
Ø  Inj. Amphotericin
Ø  Cephalothin
Ø  Talampicillin
Ø  Nitrofurantion
Ø  Oxytetracycline
Ø  Demeclocycline
वृक्क विकार की उपस्थिति में निम्न एंटीबायोटिक्स की मात्रा बहुत कम कर देनी चाहिए |

उदाहरणार्थ –
Ø  Vancomycin
Ø  Netromycin
Ø  Ethambutol
Ø  Inj. Cefotaxime
Ø  Ciprofloxacin
Ø  Oxfloxacin
Ø  Pefloxacin
Ø  Cotrimoxazole
Ø  Ampicillin
Ø  Carbenicillin
Ø  Metronidazole
Ø  Tinidazole
Ø  Amphotericin

उपरोक्त एंटीबायोटिक्स को यदि सामान्य वृक्क कार्य वाले रोगी में भी लम्बे समय तक देना पड़े, तो उसे समय-समय पर अपने वृक्क कार्य परीक्षण (Kidney function test- KFT) कराते रहने चाहिए |  जैसे –
Ø  B. Urea, S. creatinine, BUN, Urine albumin.
इन परीक्षणों से वृक्क कार्य स्थिति के बारे में सही जानकारी मिलती है |

5.  स्थानीय उपाय (Local Methods)- 
     जिस स्थान पर एंटीबायोटिक्स को कार्य करना है वहाँ का pH कम होने पर कुछ एंटीबायोटिक्स का जीवाणुओं पर प्रभाव कम हो जाता है | जैसे –
Ø  Erythromycin
Ø  Inj. Gentamycin
Ø  Inj. Mikacin
इसलिए इनके उपयोग के समय एल्कलाइजर का उपयोग कर pH सामान्य करना चाहिए, जिससे रोगी के शरीर में एंटीबायोटिक्स अपना कार्य ठीक से कर सकें |
जैसे – U T I में
Ø  Syp. Oricitral
Ø  Syp. Alkasol

स्थानीय घाव में पीव होने पर एंटीबायोटिक्स अपना कार्य ठीक से नहीं कर पाते हैं और लगातार एंटीबायोटिक्स के उपयोग के बाद भी ऐसा घाव ठीक नहीं होता है | इसलिए ऐसे घाव को ठीक से साफ कर ड्रेसिंग करनी चाहिए और यदि लगातार उसमे से स्राव निकलता रहता हो, तो उसे खुला छोड़ा जा सकता है |

·         यदि चोट लग जाने के बाद या अन्य किसी कारण से रक्त जम जाने से हिमोटोमा (Haematoma) के कारण एंटीबायोटिक्स का प्रभाव कम हो जाता है | जैसे –
Ø  Chloramphenicol
Ø  Tetracyclines
Ø  Sulfonamides
Ø  Penicillin
Ø  Cefotaxime
अतः हिमेटोमा को अतिशीघ्र शल्यक्रिया द्वारा अलग कर देना चाहिए |

·     अवायुवीय वातावरण में कुछ एंटीबायोटिक्स अच्छा कार्य करते हैं | जैसे –
Ø Metronidazol
Ø Tinidazole
Ø Secnidazole

6.  कल्चर सेंस्टीविटी टेस्ट (Culture Sensitivity Test- C S T) 
     यदि कई अच्छे एंटीबायोटिक्स के उपयोग के बाद भी रोगी का संक्रमण नियंत्रित नहीं हो पा रहा है या फिर संक्रमण नियंत्रित तो हो जाता है, परंतु एंटीबायोटिक्स बंद करते ही पुनः प्रारंभ हो जाता है | ऐसी स्थिति में रोगी के संक्रमण से सेंपल लेकर उसका कल्चर सेंस्टीविटी टेस्ट करायें, तब उसे उपयुक्त एंटीबायोटिक्स दें |

7.  एंटीबायोटिक्स का मिश्रित उपयोग (Combined use of antibiotics)- 
     एक से अधिक एंटीबायोटिक्स का एक साथ उपयोग करने के अनेक लाभ हैं –

a.       सहक्रिया (Synergism)- एंटीबायोटिक्स एक दूसरे के प्रभाव को बढ़ाते हैं | जैसे-
Ø  Ampicillin + Sulbactam
Ø  Penicillin + Erythromycin
Ø  Amoxycillin + Clavulanic Acid
Ø  Nitrofurantoin + Nalidix Acid
Ø  Inj. Renicillin + Inj. Gentamycin
Ø  Amphillin + Gentamycin      
Ø  Rifampin + I N H
Ø  Carbencillin + Gentamicin
Ø  Ceftazidin + Ciprofloxacin
Ø  Penicillin + Cortimoxazole
Ø  Streptomycin + Chloramphenical
Ø  Tetracycline + Streptomycin
Ø  Rifampin + Dapsone

उपरोक्त योग एंटीबायोटिक्स थिरैपी (Combined antibiotic therapy) द्वारा उन संक्रमण का भी उपचार किया जा सकता है, सामान्यतः जिनका उपचार करना संभव नहीं है | जैसे –
Ø  Staphaures
Ø  Streptococcus infection
Ø  Pseudomonas infection
Ø  Mycobacterium Tuberculosis
Ø  Mycobacterium Ceprae   Best Allied Health School in Lucknow

Ø  Plasmodium falciparum
Ø  Resistant Plasmodium Vivax
Ø  Klebulla Pneumoniae
Ø  Actinomycosis
Ø  Brucellosis
Ø  Haemophilus influenzae
Ø  Group- A Streptococci
Ø  S A B E( Subacute Bacterial Endocarditis)
संक्रमण के उपचार हेतु औषधियाँ को पूर्ण मात्रा में उचित समय तक देना चाहिए

b.      जीवाणुनाशक प्रभाव बढ़ाने के लिए (To increase the antibacterial or antimicrobial effect of the antibiotic)- मिश्रित उपयोग करने से एंटीबायोटिक औषधियाँ का जीवाणुनाशक प्रभाव बढ़ जाता है |
इस प्रभाव की आवश्यकता अनेक स्थितियों में पड़ती है l
Ø  मधुमेह जनित पैर (Diabetic foot)
Ø  मस्तिष्क व्रण (Brain Abscess)
Ø  श्वासनलियों का विस्फारण तथा जीर्ण संक्रमण (Bronchictesis)
Ø  जनन मूत्र मार्ग संक्रमण (Genito urinary tract infections)
Ø  शय्याक्षत (Bedsore)
Ø  उदरावरणशोथ (Peritonitis)
Ø  अवायुवीय संक्रमण (Anaerobic infections)

c.       घातक संक्रमण की प्रारंभिक अवस्था – घातक संक्रमणों की प्रारंभिक अवस्था में मिश्रित एंटीबायोटिक्स कोर्स देने से लाभ रहता है, क्योंकि उस समय निश्चित रूप से यह पता नहीं होता है की कौन सा एक एंटीबायोटिक सर्वोपयुक्त होगा |
कल्चर सेंस्टीविटी टेस्ट द्वारा सर्वोपयुक्त एंटीबायोटिक का पता लग जाने के बाद एक ही एंटीबायोटिक का उपयोग किया जाना चाहिए |
प्रतिरोध को रोकने के लिए (To Prevent Resistance)- जीर्ण संक्रमण तथा घातक संक्रमण के लिए प्रारंभ में एक से अधिक एंटीबायोटिक्स का उपयोग इसलिए भी किया जाता है जिससे जीवाणु एंटीबायोटिक्स के लिए रजिस्टेंट न हो जाये |
स्थानीय उपयोग (Local use)- अनेक एंटीबायोटिक्स, जिनका तंत्रीय रूप से उपयोग नहीं किया जा सकता है उन्हें स्थानीय रूप से उपयोग किया जाता है | यह उपयोग काफी लाभकारी हैं |

उदाहरणार्थ –
Ø  Polymyxin B
Ø  Bacitracin
Ø  Neomycin
Ø  Ketoconazole
Ø  Clotrimazole

दुष्प्रभाव को कम करने के लिए (To Reduce the side effects of the antibiotics)-
यदि दो एंटीबायोटिक्स को आपस में मिलकर उपयोग किया जा रहा हो जो एक दूसरे के जीवाणुनाशक प्रभाव को बढ़ाते हों, तो उनकी मात्रा थोड़ी-सी कम कर देने पर भी वे बहुत प्रभावी रहते हैं और यह मात्रा संक्रमण दूर करने के लिए पर्याप्त रहती है |

उदाहरणार्थ 
 क्रिप्टोकोकस जनित मस्तिष्कावरणशोथ (Cryptococcal meningitis) के उपचार हेतु |
Ø  Inj. Amphotericin B + Flucytosine
कॉम्बिनेशन में औषधि अपेक्षाकृत कम समय तक देनी पड़ती है | फलस्वरुप दुष्प्रभाव भी कम रहते हैं |
Ø  Inj. Amphotericin-B + Cap. Rifampin
              or
Ø  Inj. Amphotericin-B + Minocycline
उपरोक्त दोनों कॉम्बिनेशन (Combination) में Rifampin, Amphotericin तथा Minocycline के प्रभाव को बढ़ा देती है फलस्वरुप अपेक्षाकृत कम औषधि से ही संक्रमण दूर हो जाता है और दुष्प्रभाव कम रह जाते हैं |

Ø  Inj. Penicillin + Inj. Streptomycin
इस कॉम्बिनेशन का उपयोग अंतर्हृदय शोथ (Endocarditis) संक्रमण में किया जाता है इसे दोनों ही औषधियों की कम मात्रा की आवश्यकता होती है फलस्वरुप दुष्प्रभाव कम रह जाते हैं |

8. पोषण (Nutrition)- 
     एंटीबायोटिक्स कोर्स के समय रोगी के उपयुक्त पोषण का ध्यान रखना चाहिए | साथ ही एंटीबायोटिक्स कोर्स के समय Vit B Complex Cap. दो बार प्रतिदिन में लेते रहना चाहिए | जैसे –
Ø  Becosule cap., Cobadex forte.

उपर्युक्त सभी तथ्यों के अध्ययन का उद्देश्य यही है की रोगी में संक्रमण होने पर एंटीबायोटिक्स का उपयोग शीघ्र किया जाय, परंतु यह उपयोग अति आवश्यक होने पर ही किया जाना चाहिए |
और वह भी बिल्कुल उचित मात्रा में होना चाहिए, कम या अधिक नहीं |
हमेशा एंटीबायोटिक्स का पूर्ण कोर्स करना चाहिए |
Ø  संबंधित परीक्षण कराते रहना चाहिए |
Ø  यदि अति आवश्यक हो तो रोगी को मिश्रित एंटीबायोटिक्स थिरैपी (Combined antibiotic Therapy) देनी चाहिए |
Ø  कल्चर सेंस्टीविटी टेस्ट द्वारा सर्वोपयुक्त एंटीबायोटिक की पहचान कर लेनी चाहिए |


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